कोहराम इतना कि निजत्व निशाने पर
आंखों के इर्द-गिर्द बादल संदेह के
सोने और जागने के भीतर अशुभ भविष्यवाणियां
चौराहे से गुजरते लोग सशंकित
रहस्यमय वस्तुओं की संख्या में इजाफा
मूल्यों के अवशिष्टों पर कांपते बुजुर्ग
मूर्तियों के नेत्र करूणार्द्र
पश्चाताप में डूबी लोकगायकों की तान
छत से कपड़े उतारतीं स्त्रियां भयभीत
धार्मिक धारावाहिकों की आड़ में
एक अदृश्य भयावह फिल्मांकन
पाप की मंडी में भारतमाता का भव्य कटआउट
स्कूली किताबों में देशद्रोहियों का महिमागान
कहीं समर्थन का ढोंग तो कहीं चेतावनी
कभी वापसी के नाट्य प्रदर्शनों की ऊब
पंख टूटे पक्षियों की तरह झरते आदर्श
जीने की सारी कवायद आतंक के वैभव में
जाओ निराशाओं ! अवसादों! असहायताओं!
जाओ कि मैं जाग रहा हूं
जाओ कि उन्हें माफ करना इस दफा
दाखिला है उसी निजाम का, जो हमारी नहीं