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नींद-2 / प्रदीप जिलवाने

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नींद अजान संकेत लिपि में
उकेरे गए भित्ति चित्रों-सी होती है रहस्यमय।

नींद का कोई रंग नहीं होता
नींद पानी की तरह पारदर्शी और गंधहीन होती है

जिस समय नींद किसी को घेरे होती है
कोई नींद को अपना हथियार बना
किसी का गला रेत रहा होता है
कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका के गलबाहें डाल
टहल रहा होता है समन्दर किनारे
कोई बीमार अपने बिस्तर पर पड़े-पड़े
प्रार्थना के अंतिम मौलिक गीत रच रहा होता है
कोई नवजात पहली दफ़ा अपनी पलकें खोलकर
देख रहा होता है उजाले का रंग।

नींद के घेरे में पड़ा आदमी शायद नहीं जानता
नींद आदमखोर भी होती है
गाँव के गाँव डकार सकती है एक निवाले में
जैसे उजाले को निगल जाती है औखा।

नींद के बारे में और भी कई सच है
जैसे नींद आँखों में नहीं होती
ठीक उसी तरह
जिस तरह
सपने आँखों में नहीं होते
जन्मते हैं हमारे ही भीतर
पनपते हैं मस्तिष्क में
पलते-फूलते हैं अन्तस की गहराइयों में।