हरियाली थी
आँखों में और खेतों में
तितलियों के पीछे
दौड़ता था बचपन
सोंधी महक थी
माटी की
कभी छुई नहीं थी
कुँवारी माटी ने
बारूद की देह
बारूद ने अपवित्र किया
माटी को
और हरियाली खो गई
तितलियों के पंख
बिखर गए
ठिठक कर रह गया बचपन
लाश और फसल
खून और कीचड़
अनाज और सपने
गोली और आदेश