मधुऋतु चंचल, सरिता ध्वनि कल,
श्यामल पुलिन ऊर्मि मुख चुंबित,
नवल वयस बालाएँ हँस हँस
बिखरातीं स्मिति पंखड़ियाँ सित!
स्वप्निल पलक सुरा, साक़ी, चख,
मदिराधर मद से रहे छलक!
मंदिर भय, मसजिद का संशय
जा रे भूल, विलोक प्रियाऽलक!
मधुऋतु चंचल, सरिता ध्वनि कल,
श्यामल पुलिन ऊर्मि मुख चुंबित,
नवल वयस बालाएँ हँस हँस
बिखरातीं स्मिति पंखड़ियाँ सित!
स्वप्निल पलक सुरा, साक़ी, चख,
मदिराधर मद से रहे छलक!
मंदिर भय, मसजिद का संशय
जा रे भूल, विलोक प्रियाऽलक!