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देव प्रसाद चालिहा / दिनकर कुमार

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देव प्रसाद चालिहा को आप नहीं जानते
और अगर जानते भी हैं
तो आप मानेंगे नहीं कि
देव प्रसाद चालिहा को आप जानते हैं

अपने बच्चे भी जान नहीं पाए
देव प्रसाद चालिहा को
पत्नी भी नहीं जान पाई
दोस्त और रिश्तेदार भी नहीं जान पाए
कार्यालय के सहकर्मी भी
अनजान ही रहे
प्रशासन को भी देव प्रसाद चालिहा की
जानकारी नहीं मिली

अख़बारों में चुनाव और घोटाले के बीच
ख़ून और खेल के बीच
एक सर्द ख़बर के रूप में
उपस्थित था वह शख़्स -
देव प्रसाद चालिहा

कल ऐसा भी हो सकता है
कि आप बन जाएँ
देव प्रसाद चालिहा या फिर
मैं बन जाऊँ
देव प्रसाद चालिहा या
समूचा देश बन जाए
देव प्रसाद चालिहा

जिस तरह कार्यालय में विषपान
कर छटपटाता रहा वह शख़्स
उसी तरह हम सभी
एक-एक कर छटपटाते रहें
एड़ियाँ रगड़कर मरते रहें
अपने आदर्शों और सिद्घांतों के साथ
अपनी भूख और अपनी शर्म के साथ
अपने दायित्व और अपनी विवशता के साथ

राजकोष पर कुंडली मारकर बैठे रहे साँप
तीन महीने तक वेतन न मिले और
आँखों के सामने अन्न के लिए मचलें बच्चे
जीवन हो मृत्यु से भी बदतर
एक गाली की तरह

जहाँ बिकना ही हो जीने का एकमात्र रास्ता
चूँकि पशु नहीं बना
इसीलिए कहलाया देव प्रसाद चालिहा
चूँकि बिका नहीं
इसीलिए कहलाया देव प्रसाद चालिहा
और जो भी इस रास्ते पर चलेगा
कहलाएगा देव प्रसाद चालिहा