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मधुबनी चित्रकला / दिनकर कुमार

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बादल ने तुम्हारे चेहरे को चूमकर
दामन निचोड़ दिया
सूखी नदियाँ
जीवित हो उठीं

फल ने तुम्हारी गंध
को समेट लिया
अपने भीतर
वृक्ष ने धरती को उपहार दिया
अस्सी कोस की दूरी पर
किसी ने जलाया चिराग

सोहर और समदाओन की धुन
सुनकर देवता मुग्ध हो गए
किसान ने हल चलाया
बीज बोया
खेत को सींचा
माटी से तुम अंकुरित हुई वैदेही
कच्ची मिट्टी की दीवार पर
तुम्हारा विषाद
आँसू और मुस्कान
कहते हैं - मधुबनी चित्रकला ।