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औरत / मुकेश मानस

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औरत


झाडू लगाते-लगाते
एक जीती जागती औरत
झाड़ू में बदल जाती है
धीरे-धीरे
इस देश की
एक समूची औरत
तिनका-तिनका बिखर जाती है

रचनाकाल : 1987