Last modified on 27 मई 2010, at 22:22

शेयर / निर्मला गर्ग

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:22, 27 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मला गर्ग |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> शेयर एक सपना था …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शेयर एक सपना था
अमावस्या में पूरा खिला चाँद था
सीढ़ी बादलों तक पहुँचने की

लोग हड़बड़ाए एक दूसरे को धकियाते
चढ़ रहे थे तेज़ी से
औरतों ने उतार दिए बिछुए
देगची चूल्हे पर चढ़ी
उनके चेहरे दमक रहे थे उत्सुकता से उछाह से

फिर हुआ यह कि सीढ़ी के टूटे हत्थे
लोग भदभद गिरे
आश्चर्य से शर्मिंदगी से भाईचारे से
ताकते एक-दूसरे को
पता चला कि पूरा मुल्क चढ़ा हुआ था

मेरे ख्याल में दोस्तों
महात्मा गाँधी के बाद
यह शेयर ही था जिसने दांडी मार्च किया
पनवारी के छप्पर से
मल्टी स्टोरी फ्लैटों तक

कोई नहीं ख़रीद रहा जमीन
कोई नहीं ख़रीद रहा बर्तन
जैसे कोई चुम्बक हो
जैसे कोई सोख़्ता हो
खींच ले गया सारी सियाही

इन स्याह चेहरों के बीच
प्रधानमंत्रीजी दिखते हैं
भोले और भले
(भले ही रोम फुँके या जले)
वित्त मंत्री भी मुस्कुरा रहे हैं
दाढ़ी सहलाते हुए
मानो वहाँ न हो कोई तिनका


रचनाकाल : 1993