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सफ़ेद मोमजामा / निर्मला गर्ग

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यहाँ शिमला में ऐसा ही होता है
आप वॉले शोयिंका पढ़ रहे होंगे
धुँध आपके चश्मे से लिपट रही होगी
आप चाहेंगे उसे मेज़ की दराज़ में
भर लेना
गुच्छा बनाकर
फूलदान में खोंस देना
वह आपको बरामदे में खीँच लाएगी

आप हैरान होंगे
देवदार कहाँ गए
कहाँ गए नीले पहाड़
घाटी कहाँ गई
यहाँ तो सफ़ेद मोमजामा तना है
चारों ओर
 
                 
रचनाकाल : 1994