Last modified on 2 जून 2010, at 07:07

हरसूद / कुमार मुकुल

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

अपनी ही नींव

खोद रहे हैं वे

और उसमें जमे अंधरे को ढोकर

ले जा रहे हैं

ट्रैक्टर-ट्रालियों पर


इस अंधेरे को लेकर

कहीं भी जा सकते हैं वे

सिवा अदालत के दरवाज़ों के

वहाँ तो पहले से ऐतिहासिक इमारतें ढाहने के

आरोपियों की भीड़ लगी है


ताजमहल के बीस किलोमीटर के घेरे में

नहीं खड़केंगे पत्ते

बस पर्यटक

पैसे उगल सकते हैं वहाँ


क्या सात सौ सालों का इतिहास

दर्शनीय नहीं होता

केवल ऐतिहासिक इमारतों पर ही

धन की वर्षा करेंगे पर्यटक

ऐतिहासिक स्मृतियों का विनाश देखने

पैसे देकर नहीं आएगा कोई


कल को कुछ भी जीवत नहीं बचेगा वहाँ

अभी शेष दिख रहे

मंदिर-मस्जिद भी नहीं


सात सौ सालों से

किसे सिर नवा रहे थे लोग

किसे छोड़कर चले जा रहे हैं आज

उन सफ़ेद दीवारों से घिरे गर्भगृह में


`हम धूनी वहीं रमाएंगे´ गाने वाले

कहाँ खप गए

किस दिशा में जाकर

लोगों को नहीं

मूरतों को तो बचाने निकलें वो।