मैं शून्य की रहस्यमयी सत्ता हूँ
दिक्-काल से विमुक्त ज्योतिमत्ता हूँ
हिम-सी विलीन नील इयत्ता जिसमें
मै वह अजान वृंत-रहित पत्ता हूँ
मैं गगन जहाँ सूर्य लटकते लाखों
ब्रह्माण्ड के स्फुलिंग भटकते लाखों
बेनाल पुण्डरीक अटल तल का मैं
हर पात्र पर विरंचि लटकते लाखों
अस्तित्व का रहस्यमय फलक हूँ
विस्तार अमित, आदि-अंत तक हूँ मैं
क्षण-क्षण विलीन सृष्टियाँ अमित जिसमें
वह काल-भाल-नेत्र निष्फलक हूँ मैं