Last modified on 2 जून 2010, at 12:54

पार जाने का उतावलापन / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:54, 2 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कस्तूरी कुंडल बसे / गुला…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


पार जाने का उतावलापन
हमेशा मुझे छलता रहा,
हर बार मैं बीच धारा में ही
नौका बदलता रहा.
मेरे जीवन की हरियाली
सदा आँसुओं से सींची गयी है,
विफलताओं के बिन्दुओं को जोड़-जोड़कर ही
यह रेखा खींची गयी है
फिर भी मेरी पराजय का  यह खँडहर
विजय के नभचुम्बी स्मारकों से बड़ा है
क्योंकि पत्थर की मूर्तियों के स्थान पर
इसमें एक जीवित मनुष्य खडा है.