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जन्म भूमि / सुमित्रानंदन पंत

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जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी, जो स्वर्गादपि चिर गरीयसी!
जिसका गौरव भाल हिमाचल
स्वर्ण धरा हँसती चिर श्यामल
ज्योति मथित गंगा यमुना जल,
बह जन जन के हृदय में बसी!

जिसे राम लक्ष्मण औ’ सीता
सजा गए पद धूलि पुनीता,
जहाँ कृष्ण ने गाई गीता
बजा अमर प्राणों में वंशी!

सीता सावित्री सी नारी
उतरीं आभा देही प्यारी,
शिला बनी तापस सुकुमारी
जड़ता बनी चेतना सरसी!

शांति निकेतन जहाँ तपोवन
ध्यानावस्थित हो ऋषि मुनि गण
चिद् नभ में करते थे विचरण,
यहाँ सत्य की किरणें बरसीं!

आज युद्ध पीड़ित जग जीवन
पुनः करेगा मंत्रोच्चारण
वह वसुधैव जहाँ कुटुम्बकम
उस मुख पर प्रीति विलसी!
जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी, जो स्वर्गादपि चिर गरीयसी!