उन्नीस सौ चौरासी मेरी गली की औरतें दुखियारी विधवा हैं सारी सब जी रही हैं ऐसे मजबूरी में कोई रस्म निभाए जैसे मेरे ज़हन में कभी नहीं सोती है सारी गली रोती है 1985