तीसरा चर--
कल्प वृक्ष की सबसे ऊँची शाखा पर से
देखा मैंने ज्योति एक उतरी अम्बर से--
सद्य:जात दिवस-सी, क्षण में फिर क्या देखा!
मूर्ति चतुर्भुज बनी चमक कर वह द्युति-लेखा
सहसा मूर्ति चतुर्भुजी, छिपी गरुड़ की पाँख में
वामन एक खड़ा हुआ लिये कुशासन काँख में