सप्ताह की कविता | शीर्षक : पढ़ेगी जब तलक दुनिया लिखा दीवान ग़ालिब का रचनाकार: मधुभूषण शर्मा ’मधुर’ |
पढ़ेगी जब तलक दुनिया लिखा दीवान ग़ालिब का बढ़ेगा और भी रुतबा अज़ीमुश्शान ग़ालिब का लगा सकता नहीं कोई कभी कीमत यहाँ उसकी जो घर से बाद मरने के मिला सामान ग़ालिब का जुआरी मस्त बादाकश-सा शायर तो दिखा सब को कि कोई कद्र-दाँ ही फ़न सका पहचान ग़ालिब का गली कोठों मुहल्लों के झरोखे आज तक पूछें चुका पाएगी क्या दिल्ली कभी एहसान ग़ालिब का शराबो-कर्ज़ में ड़ूबे करें अशयार दीवाना कि प्यासा रह नहीं सकता कभी मेहमान ग़ालिब का ज़रा बादल गुज़रने दो दिखाई चाँद तब देगा नहीं मतलब समझ पाना रहा आसान ग़ालिब का न कहिए यह कि तू क्या है ये अंदाज़े-अदावत है ख़फ़ा इस गुफ़्तगू से है दिले-नादान ग़ालिब का नहीं थी हाथ को जुंबिश तो ये आँखों का ही दम था रहा पाँओं की लग्ज़िश से बचा ईमान ग़ालिब का है लाया रंग सचमुच शोख़ फ़ाक़ामस्त वो पैकर न हो बेआबरू पाया ‘मधुर’ ऐलान ग़ालिब का