Last modified on 6 जून 2010, at 13:07

उड़ीसा / मुकेश मानस

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:07, 6 जून 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)



उड़ीसा में तूफ़ान आने पर
       
1

सो रहा जहान था
उड़ीसा अनजान था
सागर में उफान आया
बहुत तेज तूफान आया

घर मड़ैया ढह गए
ढोर डंगर बह गए
गांव सारे भर गए
लोग अनगिन तर गए

उड़ीसा के वे लोग
जिनका मनाते सोग
तूफान से थे कम मरे
भूख से ज्यादा मरे

तूफान आए कभी-कभी
भूख आती रोज ही
तूफान से तो बच भी जाते
भूख से पर बच ना पाते

जहान सोता रहता है
उड़ीसा लड़ता रहता है
        
2

बच गए हनुमान जी
अकेले हनुमान जी

जिन्होंने उन्हें बनाया
रोज भोग लगाया
धूप भी जलाया
नहीं बचे वे
बच गए हनुमान जी
अकेले हनुमान जी

बचे हुए हनुमान को
कौन भोग लगाएगा
धूप कौन जलाएगा
कौन भजन गाएगा
भक्त नहीं बचे
बच गए हनुमान जी
अकेले हनुमान जी

3

क्या कसूर है इस आदमी का

इस झुके हुए खंभे से
उसी कमीज से बांध्कर
क्यों पीट रहे हैं उसे आप
इसने किया ही क्या है

किसी की इज़्ज़त लूटी है
किसी को चाकू मारा है
किसी का धन लूटा है
रोटी का
एक टुकड़ा ही तो उठाया है

क्या हुआ है
कुछ भी तो नहीं
बस इसके गांव में
तूफान ही तो आया है

क्या कसूर है इस आदमी का?

4

उधर आया है तूफान
भूखे हैं सैकड़ों इंसान

इधर पड़ा है आज
सैकड़ों टन अनाज

वाह मेरे देश की व्यवस्था
भूखों तक अन्न नहीं पहुंचा

5

उड़ीसा में आया तूफान
लोगों में बाकी थी इन्सानियत
खूब किया दान

लोगों ने तनख्वाहें कटवाई
पीड़ितों के लिए जमा हुई
जरूरी चीजें तमाम
ढिंढ़ोरा पीटा सरकार ने
सब चीजें पीड़ितों में बंटवाई

खबर एक छपी थी, कल के अखबार में
पढ़कर, अचरज हुआ महान
राहत अफसरों के घर मिला
राहत का सामान

स्वेटर, कंबल और शाल
वे बेचते पाए गए
दवाइयां, चावल, दाल,


रचनाकाल : नवम्बर 99