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ग़ज़ल-दो / मुकेश मानस

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उनके बंगलों में बसंत, फूलदार आया है
मेरे चेहरे पे ही क्यों, कैक्टस उग आया है

उसको कोई रोटी दो, पानी दो उसे कोई
चंद्रमा पे आदमी, जाके लौट आया है

जाने किसके वास्ते, वो मसजिदें ढहा रहे
मेरा राम तो सदा, दिल में रहता आया है

कैसे फूटेगी कोई, रौशनी ए जाने मन
तेरे आंचलों पे जब, तीरगी का साया है

तू मेरा निज़ाम है, तुझसे पूछता हूं मैं
हर दीए की रोशनी पे, किसका साया है।

रचनाकाल:1996