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हानी / मुकेश मानस

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हानी

भीतर खत्म हुआ जब पानी
घर से बाहर आया हानी

आसमान में बादल देखा
बड़े देश को प्यासा देखा
लगा सोचने अपना हानी
कहां गया सब पानी

खेत-खेत और गांव-गांव
पानी के हर ठांव-ठांव
कमल प्यास में नहीं खिला
उसको पानी नहीं मिला

हरा समंदर
गोपी चंदर
बूझो यारो
बूझो कैसे
अपना हानी
बनता पानी

रचनाकाल:1998