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दीवाना लड़का / मुकेश मानस

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संदेह का कुहरा छाया था जब
तब आशा के तार बुने

हर खिड़की जब बंद मिली
तब मन की खिड़की खोली

हर तरफ निराशा पसरी थी जब
तब अनगिन ख़्वाब सजाए

जब कोई साथ न आया
तब अपनी ही बांह गही

इस तरह एक दीवाना लड़का
चलता आया, चलता आया

रचनाकाल:1999