संदेह का कुहरा छाया था जब
तब आशा के तार बुने
हर खिड़की जब बंद मिली
तब मन की खिड़की खोली
हर तरफ निराशा पसरी थी जब
तब अनगिन ख़्वाब सजाए
जब कोई साथ न आया
तब अपनी ही बांह गही
इस तरह एक दीवाना लड़का
चलता आया, चलता आया
रचनाकाल:1999
संदेह का कुहरा छाया था जब
तब आशा के तार बुने
हर खिड़की जब बंद मिली
तब मन की खिड़की खोली
हर तरफ निराशा पसरी थी जब
तब अनगिन ख़्वाब सजाए
जब कोई साथ न आया
तब अपनी ही बांह गही
इस तरह एक दीवाना लड़का
चलता आया, चलता आया
रचनाकाल:1999