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आर्त / सुमित्रानंदन पंत

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आवें प्रभु के द्वार!
जो जीवन में परितापित हैं,
हतभागे, हताश, शापित हैं,
काम क्रोध मद से त्रासित हैं,
आवें वे आवें वे प्रभु के द्वार!
बहती है जिनके चरणों से पतित पावनी धार!

जो भू के मन के वासी हैं,
स्त्री धन जन यश फल आशी हैं,
ज्ञान भक्ति के अभिलाषी हैं,
आवें वे आवें वे प्रभु के द्वार!
प्रभु करुणा के महिमा के हे मेघ उदार!

पांथ न जो आगे बढ़ सकते,
सुख में थकते, दुख में थकते,
टेढ़े मेढ़े कुंठित लगते,
आवें वे आवें वे प्रभु के द्वार!
पूर्ण समर्पण करदें प्रभु को लेंगे सकल सँवार!

सब अपूर्ण खंडित इस जग में
फूलों से काँटे ही मग में
मृत्यु साँस में, पीड़ा रग में
आवें वे आवें वे प्रभु के द्वार!
केवल प्रभु की करुणा ही है अक्षय पूर्ण उदार?