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चेतन / सुमित्रानंदन पंत

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गगन में इंद्रधनुष,
अवनि में इंद्रधनुष!

नयन में दृष्टि किरण
श्रवण में शरद गगन
हृदय के स्तर स्तर में
उदित वह भिन्य वपुष!

अचित् का चिर जहाँ तम,
दुरित जड़ता औ भ्रम
जगत जीवन अमा में
सुवित वह ज्योति पुरुष!

तमस में गिर न रँगा
नींद से पुनः जगा
मरण के आवरण से
प्रकट वह चिर अकलुष!

तृणों में इंद्रधनुष
कणों में इंद्रधनुष
स्पर्श पा चेतन का
जग उठे शप्त नहुष!