Last modified on 9 जून 2010, at 16:59

इन्द्र / सुमित्रानंदन पंत

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:59, 9 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= स्वर्णधूलि / सुमित्र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इन्द्र सतत सत्पथ पर देविं मर्त्य हम चरण
दिव्य तुम्हारे ऐश्वर्यों को करें नित ग्रहण!
तुम, उलूक ममता के तम का हटा आवरण
वृक हिंसा औ’ श्वान द्वेष का करो निवारण!
कोक काम रति येन दर्प औ’ गृद्ध लोभ हर
षड रिपुओं से रक्षा करो, देव चिर भास्वर!
ज्यों मृद् पात्र विनष्ट शिला कर देती तत्क्षण
पशु प्रवृत्तियाँ छिन्न करो हे प्रबल वृत्रहन्!
इन्द्र हमें आनंद सदा तुम देते उज्वल
पीछे अघ न पड़े जो आगे हो चिर मंगल!
दिव्य भाव जितने जो देव तुम्हारे सहचर
वृत्र श्वास से भीत छोड़ते तुम्हें निरंतर!
प्राण शक्तियाँ मरुत साथ देते जब निश्वय
पाप असुर सेना पर तुम तब पाते नित जय!
दान दान पर करता हूँ मैं इन्द्र नित स्तवन
तुम अपार हो स्तुति से भरता नहीं कभी मन!
जौ के खेतों कें ज्यों गायें करतीं विचरण
देव हमारे उर में सुख से करो तुम रमण!
सर्व दिशाओं से दो हमको, इन्द्र, चिर अभय
विजयी हों षड् रिपुओं पर जीवन हो सुखमय!