Last modified on 9 जून 2010, at 17:25

वरुण / सुमित्रानंदन पंत

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:25, 9 जून 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वरुण मुक्त कर दो मेरे धिक् जीवन बंधन,
पाप निवारक हे प्रकाश से भर मेरा मन!
ऊपर और खुलें ये पाश गुणों के उत्तम
नीचे प्रथम मध्य में हों श्लथ बंधन मध्यम!

अंत प्राण मन सत रज तम का ही रूपांतर
हम चिर अकलुष बनें प्रदिति का आश्रय पाकर!
यह मानव तम सतत सप्त ऋषियों से रंजित
चैत्य प्राण जिसमें सुषुप्ति में से चिर जागृत!

सदा भद्र संकत्या से हम हों परिपोषित
देवों को कर तृप्त रहें निज सरल, हृष्ट चित!
भद्र सुनें ये श्रवण भद्र देखें ये लोचन
स्थिर अंगों से सदा सत्य पथ करें जन ग्रहण!

ऋजु प्रिय देव सखा बन रहें सुरा से वेष्टित
उनकी भद्रा सुमति करे सब की रक्षा नित!
पृथ्वी द्यो औ’ अंतरिक्ष की समिधा निश्चित
श्रम से तप से अमृत ज्योति का पावें हम नित!