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जोकर / दीनदयाल शर्मा

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इसके बिना रहे सर्कस सूना
दर्शक एक ना आए
उल्टे-सीधे पहन के कपड़े
करतब यह दिखलाए।

गिरते-गिरते बच जाता यह
पल-पल में इतराए
गुमसुम कभी न देखा इसको
हर पल यह मुस्काए।

भीतर ही भीतर खुद रोता
जग को खूब हँसाए
इसको कौन हँसाएगा, यह
मन ही मन ललचाए।

मन मर्जी का मालिक है ये
"जो कर" यह कहलाए
बच्चा बूढ़ा नर और नारी
सबके मन को भाए।।