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{{अंतिम कविता
।रचनाकार=रमेश कौशिक
}}
वे आ रहे हैं
श्याम वर्ण अश्र्वों पर सवार
मेरे घर की ओर ।
उनके काम बता दिए गये-
एक का काम है मुझको नहीं बोलने देने का
वाणी को छीन लें ।
दूसरे का काम है
न सुनने देने का ।
तीसरे का काम है
आंख बन्द करने का-
ताकि मैं उनका आतंक न देख सकूं ।
चौथे का काम है
मेरे दांत तोड़ने का
ताकि मैं चलते समय
किसी पर आक्रमण न करूँ ।
कुछ देर रुक कर
फिर एक गहन सन्नाटा।
(*यह कविता गहन रुग्णावस्था में निधन से मात्र 20 दिन पूर्व रचित)