सीथीयाई
रचनाकार : अलेक्सान्द्र ब्लोक
रचनाकार : अलेक्सान्द्र ब्लोक
माना तुम हो लाखों
लेकिन हम प्रचण्डधारा अटूट हैं
वेग हमारा रोक नहीं पाओगे
हम हैं सीथिआई
सोचो रक्त एशिया अपना
सामूहिक भूखें वक्र बनाती हैं
अपनी भकुटी को
धीमें धीमें शब्द तुम्हारे
अपने लिए मात्र घंटे-से
चाटुकर गर्हित दासों-सा है यूरोप तुम्हारा
मंगोल दलों से जिसे बचाता
पर्वताकार विस्तत अपार पौरुष अपना
सदियों रोक षड्यन्त्रों को
तुमने हिम दरकन-सा
सुनी पुकारें अनहोनी अनजान कथा-सी
लिस्बन और मसीना की
सदियों स्वन तुम्हारे सीमित थे पूरब तक
लूटा माल चुराये मोती छिपा लिया सब
धोका देकर घेरा हमको बन्दूकों से
आ पहुँचा है समय
कयामत ने अपने डैने फैलाये
बहुत कर चुके