Last modified on 21 जून 2010, at 01:58

हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई / जॉन एलिया

हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई

उसके उम्मीदे नाज़ का हमसे ये मान था की आप
उम्र गुज़ार दीजिये, उम्र गुज़ार दी गयी

तेरा फिराक़ जान-ए-जां ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फिराक़ में खूब शराब पी गई

तेरे विसाल के लिए अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल कह थी खराब और खराब की गई

एक ही हादसा तो है और वो यह कह आज तक
बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई

बाद भी तेरे जान-ए-जां दिल में रहा अजब समाँ
याद रही तेरी यहाँ फिर तेरी याद भी गई

उसकी गली से उठके मैं आन पड़ा था अपने घर
इक गली की बात थी और गली गली गयी