Last modified on 25 जून 2010, at 12:28

कानपूर–7 / वीरेन डंगवाल

Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:28, 25 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल }} …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


घण्‍टाघर
जैसे मणिकर्णिका है जिसे कभी नींद नहीं
थके कुए मनुष्‍यों की रसीली गंध पर
लार टपकाता
एक अदृश्‍य बाघ
बेहद चौकन्‍ना होकर टहलता भीड़ में

एहतियात से अपने पंजे टहकोरता
कि कहीं उसकी रोयेंदार देह का कोई स्‍पर्श
चिहुंका न दे

फुटपाथ पर ल्‍हास की तरह सोते
किसी इन्‍सान को

'नंगी जवानियां'
यही फिल्‍म लगी है
पास के 'मंजु श्री' सिनेमा में
घटी दर पर.