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कानपूर–10 / वीरेन डंगवाल

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रात है रात बहुत रात बड़ी दूर तलक
सुबह होने में अभी देर हैं माना काफी
पर न ये नींद रहे नींद फकत नींद कहीं
ये बने ख्‍वाब की तफसील अंधेरों की शिकस्‍त