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थाह / विष्णुचन्द्र शर्मा

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नीले या
हल्के आसमानी रंग को
पहनकर
निकली हो !
आसमान साड़ी में लिपटा है
या बँधा
तुम्हीं से दब रहा है ।

नीले आसमान में
चिड़िया साँस भर कर
ठहर जाती है ।
हल्के आसमानी
जलाशय में डुबकी मार
हंस
थाह लेता है नभ की गहराई की ।
रंग को समेटकर
तुम किस गहराई को थाह रही हो ।

मेरा मन :
साड़ी में लिपटे या बँधे-दबे
कुलबुलाते दिल में तुम्हारे ही
ठहर कर साँस लेता है ।

मेरा मन :
थाह लेता है
रंग को दबा कर तुम
कितनी दूर जाती हो !!

रचनाकाल : 1985