दामन को मलमलकर धोया,
दाग़ नहीं छूटे ।
बड़ी पुण्य-भागा है शिप्रा ।
कालिदास के मेघदूत-सा डूबा, उतराया
ठहरा, मँडराया ।
काट रहा हूँ अपना बोया
कर्म किस फूटे ।
रंग उड़ गए थे जो गहरे
मौन पितामह, स्वजन मौन है, झुक आए कंधे
पिता हुए अंधे ।
पाकर भी मैंने सब खोया
भाग्य रहे रूठे ।
आज उम्र के विकट मोड़ पर
औंधे किसी कूप में जैसे राह नहीं दिखती
थाह नहीं दिखती ।
चन्दनमन जी भर कर रोया
नाग नहीं छूटे ।