आग़ाज़
दरिया हो ख़ामोश तो मत समझो
कि उसमें रवानी नहीं है
हम हैं अपने फर्ज़ से मज़बूर
मत समझो कि जोश-ए-जवानी नहीं है
हम हैं लहरें किसी बेचैन समंदर की
उठे तो तूफान बनके उट्ठेंगे
अभी हमने उठने की ठानी नहीं है।
आग़ाज़
दरिया हो ख़ामोश तो मत समझो
कि उसमें रवानी नहीं है
हम हैं अपने फर्ज़ से मज़बूर
मत समझो कि जोश-ए-जवानी नहीं है
हम हैं लहरें किसी बेचैन समंदर की
उठे तो तूफान बनके उट्ठेंगे
अभी हमने उठने की ठानी नहीं है।