Last modified on 29 जून 2010, at 12:47

औरत की ज़िन्दगी / रेणु हुसैन

Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:47, 29 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेणु हुसैन |संग्रह=पानी-प्यार / रेणु हुसैन }} {{KKCatKav…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक ही धरती पर
एक ही आसमान के नीचे
एक से दो घर
 
इन्हीं दो घरों में
एक औरत करती है सफ़र।
 
एक घर में खिलती है
फैल जाती है
दूसरे में कैद होकर सिमट जाती है

एक औरत की ज़िन्दगी
इन्हीं के दरमियां कट जाती है