Last modified on 29 जून 2010, at 14:53

चक्र / रेणु हुसैन

Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:53, 29 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेणु हुसैन |संग्रह=पानी-प्यार / रेणु हुसैन }} {{KKCatKav…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


मन व्यथित क्यों होता है

रोज निकलता है सूरज
रोज ही आती है सुबहा
रोज उजाला आता है
टूट जाये तो चिड़िया
देखो फिर से नीड़ बनाती है
बिखर-बिखर कर लहर बेचारी
फिर साहिल पर आती है

पतझर का आना है लाज़िम
जैसे आती है बयार
मुरझाये सब फूल चमन के
खिल-खिल उठते बारम्बार

कोई उदासी नहीं स्थायी
ग़म भी रहता नहीं सदा
खुशियों का आना है लाज़िम
दुख की किस्म्त अंत बदा

मन व्यथित क्यों होता है