Last modified on 30 जून 2010, at 20:46

गौरैया / अवनीश सिंह चौहान

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:46, 30 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> नहीं दिखाई …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नहीं दिखाई देती गौरैया
आज हमारे शहरों में

छत-मुँडेर पर, गाँव-खेत में
चिड़ीमार ने जाल बिछाए
पकड़-पकड़ कर पिंजड़ों में धर
चिड़ियाघर में उसको लाए

अब सुधिया कभी दिखे ना कोई
आते-जाते बहरों में

डरी हुई बैठी गौरैया
टूटे पर अपने सहलाए
दम घुटता है साँसें दुखतीं
छुट जाने की आस जगाए

गोते खाती रहती छिन-पलछिन
अंदर-बाहर लहरों में

दाना भी है, पानी भी है
मीठे बोल, रवानी भी है
पराधीनता में दुख-ही-दुख
बात सभी ने जानी भी है

यहाँ सभी चुप हैं राजा-रानी
रखकर उसको पहरों में?