Last modified on 30 जून 2010, at 21:10

कैटवाक / अवनीश सिंह चौहान

जेठ-दुपहरी चिड़िया रानी
सुना रही है फाग

कैटवाक करती सड़कों पर
पढ़ी-पढ़ाई चिड़िया रानी
उघरी हुई देह से जादू
पलछिन करती चिड़िया रानी

क़ैद सभी को कर लेती यह
जलते हुए चिराग़

बिना परों के उड़ती-फिरती
ताक रहे तारे ललचाए
हाथ जोड़कर कुआँ खड़ा है
पानी लेकर बदरा आए

जब चाहे तब सींचा करती
अपने मन का बाग

कितने उलझे दृश्य-कथा में
कुछ द्विअर्थी संवादों के
अनजानी मस्ती में खोए
आकर्षण झूठे वादों के

पल भर में बरसाती पानी
पल भर में है आग