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क्‍या कीजे! / वीरेन डंगवाल

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उत्‍कृष्‍ट उच्‍चारण परिनिष्ठित भाषा
मृदुल हास
बुद्धि तीक्ष्‍ण
चेहरा भी सुन्‍दर और मोहरा भी
धर्मनिरपेक्षता पर भी है पूरा विश्‍वास
अब आत्‍मा में ही नहीं है सुवास
तो क्‍या कीजे !
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