Last modified on 29 अप्रैल 2007, at 22:06

घन-कुरंग / नागार्जुन

नागार्जुन कवितायें नागार्जुन

नभ में चौकडियां भरें भले

शिशु घन-कुरंग

खिलवाड देर तक करें भले

शिशु घन-कुरंग

लो, आपस मेन गुथ गये खूब

शिशु घन-कुरंग

लो, घटा जल में गये डूब

शिशु घन-कुरंग

लो, बूंदें पडने लगीं, वाह

शिशु घन-कुरंग

लो, कब की सुधियां जगीं, आह

शिशु घन-कुरंग

पुरवा सिह्की, फिर दीख गये

शिशु घन-कुरंग

शशि से शरमाना सीख गये

शिशु घन-कुरंग

१९६४ में लिखी गई