खुब गये
दूधिया निगाहों में
फटी बिवाइयोंवाले खुरदरे पैर
धंस गये
कुसुम-कोमल मन में
गुट्ठल घट्ठोंवाले कुलिश-कठोर पैर
दे रहे थे गति
रबड़-विहीन ठूंठ पैडलों को
चला रहे थे
एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन चक्र
कर रहे थे मात त्रिविक्रम वामन के पुराने पैरों को
नाप रहे थे धरती का अनहद फासला
घण्टों के हिसाब से ढोये जा रहे थे !
देर तक टकराये
उस दिन इन आंखों से वे पैर
भूल नहीं पाऊंगा फटी बिवाइयां
खुब गयीं दूधिया निगाहों में
धंस गयीं कुसुम-कोमल मन में
१९६१ में लिखी गई