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नहीं जन्मेंगे / ओम पुरोहित ‘कागद’

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सूख-सूख गए
सांप-सलीटा
बिच्छू-कांटा
सब धरती की कोख में;
जो निकले थे कभी
बूंद भर बरसात में ।

खोहों में
भटक-भटक मर लिए
जान लिए हाथ में ।

नहीं जन्मेंगे
अब कभी थार में
रहा जन्मना
अगर उनके हाथ में ।