Last modified on 4 जुलाई 2010, at 11:53

अमावस को / मीना चोपड़ा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:53, 4 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीना चोपड़ा |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> अमावस को- तारों …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अमावस को-
तारों से गिरती धूल में
चाँदनी रात का बुरादा शामिल कर
एक चमकीला अबीर
बना डाला मैने
उजला कर दिया इसको मलकर
रात का चौड़ा माथा ।

सपनों के बीच की यह चमचमाहट
सुबह की धुन में
किसी चरवाहे की बाँसुरी की गुनगुनाहट बन
गूँजती है कहीं दूर पहाड़ी पर ।

ऐसा लगता है जैसे किसी ने
भोर के नशीले होठों पर
रात की आँखों से झरते झरनों में धुला चाँद
लाकर रख दिया हो
वर्क से ढकी बर्फ़ी का डला हो ।

और-
चाँदनी कुछ बेबस सी
उस धुले चाँद को आगोश मे अपने भरकर
एक नई धुन और एक नई बाँसुरी को ढूँढ़ती

उसी पहाड़ी के पीछे छुपी
दोपहर के सुरों की आहट में
आती अमावस की बाट जोहती हुई
खो चुकी हो ।