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धुआँ / मीना चोपड़ा

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उठता है
मिट्टी के अन्तःकरण से
वह धुआँ धुआँ
क्यों है ?

मिट्टी जो मेरी
हथेली से लगकर
बदल जाती थी
एक ऐसे क्षण में
जिसका न कोई आदि था
न ही अन्त!

उसी मिट्टी से जो
उठता है आज
वह धुआँ क्यों है?