वक़्त की सियाही में
तुम्हारी रोशनी को भरकर
समय की नोक पर रक्खे
शब्दों का काग़ज़ पर
क़दम-क़दम चलना।
एक नए वज़ूद को
मेरी कोख में रखकर
माहिर है कितना
इस क़लम का
मेरी उँगलियों से मिलकर
तुम्हारे साथ-साथ
यूँ सुलग सुलग चलना
वक़्त की सियाही में
तुम्हारी रोशनी को भरकर
समय की नोक पर रक्खे
शब्दों का काग़ज़ पर
क़दम-क़दम चलना।
एक नए वज़ूद को
मेरी कोख में रखकर
माहिर है कितना
इस क़लम का
मेरी उँगलियों से मिलकर
तुम्हारे साथ-साथ
यूँ सुलग सुलग चलना