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मैं देशद्रोही नहीं हूं / ओम पुरोहित ‘कागद’

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मैं देशद्रोही नहीं हूं
मैं मानता हूं
मैं स्वतन्त्र भारत की देह पर फोड़ा हूं,
लेकिन मैं अजेय नही हूं।
बस,अपने भीतर दर्द रखता हूं,
इसीलिए अछूत हूं,
दोषी हूं।
मैं अक्षम नहीं हूं,
भूखा हूं।
भले ही आपने मुझ पर-
‘गरीबी की रेखा’ पटक कर,
छुपाने का असफल प्रयास किया है।
फिर भी मैं
     तुम्हारे लिए भय हूं,
कि, कोई दबा पड़ा है।
  
सामने न सही
अपने ही मस्तिष्क में,
मुझ से हाथ मिलाते हो तुम।

मैं देशद्रोही नहीं हूं;
भले ही मैं,
राष्ट्रीय ध्वज पहन लेता हूं।
क्यों कि मैं नंगा हूं।

मैं देशद्रोही नहीं हूं ;
चाहे मैं-
राष्ट्रीय गीत पर खड़ा नहीं होता,
क्यों कि, मैं
फावड़ा थामे कढ़ाई पर झुका हूं,
और पीठ पर समय
भूख के चाबुक लिए खड़ा है।

मैं बे-बस हूं।
तभी तो-
मैं अपना श्रम बेचता हूं।
मैं न्याय क्या मांगूं?
न्याय संविधान में छुपा है।
मेरी पीठ कमजोर है।
संविधान को ढ़ो कर
अपने गांव नही ला सकता।

मैं निराशावादी हूं।
तभी तो-
मैनें अपनी अंगुली,
तुम्हारे मुंह में दे रखी है,
खून चूसने के लिए।

मै इंसान नही हूं;
वोट हूं।
तभी तो-
आश्वासनों पर लुढ़कता हूं।
पेटी में बंद हो,
पांच साल तक-
शांत पड़ा रहता हूं।

मैं मॉं हूं!
तभी तो सह लेता हूं,
जमाने भर के कष्ट
तुम्हारी खुशी के लिए।