खन से आ गिरीं
कलाई में चूडियां
और हाथों में थे
निश्चय ही श्रीफल
एक अधोमुखी कमल
कमल-नाल पर खुलता गया
आहिस्ता-आहिस्ता
पंखुडियों का सिकुडना
आहिस्ता-आहिस्ता
फिर खुलना
आहिस्ता-आहिस्ता
पराग का झरना
आहिस्ता-आहिस्ता
गुत्थमगुत्था सांसों के बीच
खिलखिला रही थी सुगंध !