Last modified on 7 जुलाई 2010, at 09:07

साड़ी / उदयन वाजपेयी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:07, 7 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उदयन वाजपेयी |संग्रह=कुछ वाक्य / उदयन वाजपेयी }} {…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पिता लम्बी मेज़ के सिरे पर बैठे काँट-छुरे से रोटी तोड़ रहे हैं। मैं उनके बगल में बैठा उनके इस कारनामे पर अचम्भित होता हूँ। माँ झीने अँधेरे में डूबती, खाली कमरे में बैठी है। उसकी साड़ी पर पिता की मौत धीरे-धीरे फैल रही है। नाना वीरान हाथों से दीवार टटोलने के बाद खूँटी पर अपनी टोपी टाँग देते हैं। नानी दबी आवाज़ से बुड़बुड़ाती है: ‘क्या बुड़ला फिर सो गया ?‘

माँ मेरी हठ के कारण सफ़ेद साड़ी बदलती है। पिता सड़क के मुड़ते ही आकाष की ओर मुड़ जाते हैं।