Last modified on 9 जुलाई 2010, at 10:17

खतरा / लीलाधर जगूड़ी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:17, 9 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर जगूड़ी |संग्रह =चुनी हुई कविताएँ / लीलाधर जगूड…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जनता के मन में जो जंगल है बिना पक्षियों का
उससे कुछ ही देर बाद
चीख़ की एक लहर फ़ैलने वाली है ।