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गंगा-स्‍तवन–तीन / वीरेन डंगवाल

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इस तरह चीखती हुई बहती है
हिमवान की गलती हुई देह !

लापरवाही से चिप्‍स का फटा हुआ पैकेट फेंकता वह
आधुनिक यात्री
कहां पहचान पाएगा वह
खुद को नेस्‍तनाबूद कर देने की उस महान यातना को
जो एक अभिलाषा भी है

कठोर शिशिर के लिए तैयार हो रहे हैं गांव

विरल पत्र पेड़ों पर चारे के लिए बांधे जा चुके
सूखी हुई घास और भूसे के
लूटे-परखुंडे
घरों में सहेजी जा चुकी
सुखाई गई मूलियां और उग्‍गल की पत्तियां
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