Last modified on 10 जुलाई 2010, at 02:52

कहानी / नरेन्द्र जैन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:52, 10 जुलाई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उन्होंने कहा
वे सपने देखते हैं
जंगल में कोई जानवर कभी
सपना नहीं देखता

याचक-सी उनके आस-पास
मँडराती दुनिया को वे हर मोड़
पर तसल्ली देते हैं
'हम जो हैं तुम्हें आगे बढ़ाएंगे'

वह कम्बख़्त
एक क़दम आगे बढ़ती है
दस क़दम पीछे हटती है
एक सपने की ख़ातिर
औरत अपने गर्भ में
बच्चे को बढ़ता हुआ देखती है